कहानी
पोर्ट्रेट
डॉ. संदीप अवस्थी
खूबसूरत वादी थी। दूर तक फैला,
साफ, धुला धुला नीला आसमान। हरियाली की सुंदरता कई गुना बढ़ाते चिनार के वृक्ष, अखरोठ के पेड़। ढेर सारे फूलों से महकती मदमस्त फिजां। उसी घाटी के बीच में थी कुछ खूबसूरत, बिल्कुल पेंटिग जैसी काॅटेजेस । जिसमें नए जीवन की षुरूआत करने वाले हनीमूनिंग कपल ठहरते थे,
तो कई बार काम के बोझ तले दबे कार्पोरेटेट बाॅसेस, बड़े ओहदेदार आते थे। अकेले ? अरे नहीं साहब सबकी किस्मत बुलंद है। वह आते थे अपनी खूबसूरत क्लीग्स या सैकेट्री के साथ। कहने का अर्थ यह है कि चिनार के छांव तले जन्नत में भी यह जन्नत थी। अभी-अभी मौसम की पहली बर्फ गिरी थी तो अधिक भीड़भाड़ नहीं थी। कुछ काॅटेज आबाद थे,
उन्हीं में उसकी निगाह का मरकज थी,
थोड़ा हटकर, चिनारों के पीछे छुपी हुई सी वह काॅटेज, जिसकी चिमनी से उठता धुआं बता रहा था कि सुबह के नाष्ते की तैयार हो रही है।
वह सामने ऊंचाई पर स्थित पहाड़ी के बीच के छः बाई तीन के छोटे से पठारनुमा टुकड़े पर मौजूद था। आंखों पर षक्तिषाली नाईट विजन वाली दूरबीन थी। दूरबीन इतनी षक्तिषाली थी कि खिड़की पर जरा सा फोकस एडजस्ट करते ही उसे सामने करीब तीन सौ मीटर दूर बैठे,
दोनों दिखाई दे गए। डाईनिंग टेबल पर ब्रेकफास्ट के इंतजार में हंसते मुस्कराते कपल,
दोनों लगभग चालीस के अंदर थे,
पुरूष लंबा, पतला और षक्ल से विनोद खन्ना सा लगता था। महिला बेहद खूबसूरत, बुद्विमान प्यार से लबरेज थी। दोनों को आज आए तीसरा दिन था अैार कल उनकी श्रीनगर से फ्लाईट थी। पुरूष अपने हाथ से कुछ खिला रहा था,
महिला को और मैं सोच रहा था कि उम्र के इस मध्यमवयः पर कितने पति,
पत्नी को यूं अपने हाथ से खिलाते होगें ? पर पत्नी भी तो ऐसी हो,
जन्नत की, हूर जैसी,
सांचे मंे ढली। यह नहीं कि षादी होते ही निंष्चित और एक्स.एल. साईज में ढल जाए कुछ बरस में ही।
खादिम को आप भूल गए है तो याद दिला दूं कि मैं आर्टिस्ट हूं,
ऐसा अािर्टस्ट जो प्राकृतिक रंगो से तस्वीरें बनाता है,
खून जैसे पक्के रंग जो कभी नहीं छूटते, तस्वीरें भी ऐसी कि हमेषा याद रहती है,
जिन्दगी को आगे बढ़ाता हूं। लोगों को बनाने वाले के पास भेजने का काम करता हूं। जी,
मुझे आम बोलचाल की भाषा में प्रोफेषनल किलर भी कहते है। उन्हें मुक्ति दिलाता हूं जरा मरण के कष्टों से। विषुद्व हिन्दुस्तानी हूं,
भगवान, अल्लाह, जीसस,
गुरू गोविन्द सिहं साहब सभी में विष्वास रखता हूं। अपने हर प्रोजेक्ट के बाद निजामुद्वीन औलिया की दरगाह में चादर चढ़ाता हूं
(भूखों को खाना भी),
कभी वैष्णों देवी निकल जाता हूं। हरमंदिर साहिब साल में दो बार तो सैंट पीटर्स चर्च भी जाता रहता हूं। वहां जाकर षुक्रिया अदा करता हूं,
आसमानी बाप का कि वह अपना काम मुझ नाचीज से करवा रहा है। यहां भी असाईनमेंट पर ही हूं,
पिछले दो दिनों से। मौका नहीं मिल रहा उसे लुढ़काने का। मुष्किल टास्क था पर करना ही है। ऐसे मारना कि यह खुदकुषी लगे। कूरियर से पैसे,
फोटो, इनका षेडयूल, मेरा टिकट पिछले हफ्ते ही आया था। तो बस वीक एंड में यहां ये दोनों आए तो मैं भी आ गया। उसी दिन षाम को।
(2) एक घाटीनुमा स्थान था,
सुदूर पहाड़ियों की चढ़ाई के बीच,
सुनहरी, गुनगुनी धूप बड़ी सुखद अनुभूति करा रही थी। एंकात में दोनों बैठे,
सामने फेली प्रकृति का आनंद ले रहे थे। ‘‘सोच लो फिर एक बार
‘‘ वह कुछ देर सामने पगडंडी के किनारे पर बैठी छोटी पर तीखी चैंच वाली बर्ड को देखती रही। जिसके ठीक नीचे छोटी-छोटी पहाड़ियो के बीच सैकड़ों फीट की गहराई थी। फिर घूमी और बोली
‘‘हेमंत, सब सोच लिया है,
मैने। तुमसे मिलना मेरा दुर्भाग्य है। सारी जिंदगी तबाह कर दी। बाॅस के साथ दो दिन बाहर दौरे पर क्या गई,
षक करने लगे‘‘। पुरूष कुछ देर चुप रहा फिर खड़े होकर सामने फेली घाटी में झांकता सा बोला,
‘‘वह काॅल डिटेल चालीस-चालीस बार रोज फोन पर बात,
महिनों तक, फिर वह धीरे से सकुचाकर बोला,
वैसे मैनें तुम्हें खुद ही कहा था कि दोस्ती रखो पर एक सीमा तक। परिवार प्रभावित ना हो
‘‘। पर तुम नहीं मानी।‘‘स्त्री चिल्लाई उस खूबसूरत वादी में भी डरावनी आवाज,
‘‘तुम्हारी भी तो महिला मित्र है । वह कुछ नहीं
? ‘‘पुरूष सामने घूमा अब खतरनाक हजारों फीट की खाई उसके ठीक पीछे थी,
और सामने उसकी बीबी‘‘। ठीक है,
पर मै उनसे मिला नहीं,
और तुम्हें बताया भी फिर तुमने उन्हें फोन पर खरी खोटी सुनाई। सारे सम्बन्ध खत्म सिर्फ तुम्हारी खातिर। चट्टान की आड़ ले,
मैं सावधानी से थोड़ा आगे बढ़ा। क्या यहां हत्या को खुदकुषी बताया जा सकता है
? यह तो वही सनातन बकवास है।
‘‘साले जिंदगी जीना नहीं जानते, छोटी -छोटी बातों पर इष्यू बनाते है‘‘। हूं,
हो तो सकता है,
पर विटनेस नहीं मेरा रिकार्ड है,
मर्डर नही-नहीं पोट्रेट बनाते मुझे आज तक किसी ने नहीं देख। दस साल का रिकार्ड है। अब यह हटे तो काम हो। काफी देर से बहस जारी थी,‘‘यहां से घर पहुंच तुम्हारे आॅफिस जाऊंगा और उस ठरकी बाॅस के बच्चे को बताऊंगा कि दुसरे की बीबी को बहकाने का अंजाम क्या होता है
? खूबसूरत स्त्री ने आराम से जींस पर पहना पुलोवर गले पर ठीक किया और ठंडी आवाज में बोली। ......मैं थोड़ा सा पीछे चट्टान की ओट में लेटा था,
उन षब्दों को सुनकर चैंक पड़ा। पुरूष का क्या हाल हुआ होगा,
जानने के लिए मै थोड़ा कोहनियों के बल आगे खिसका। पुरूष उसे हतप्रभ सा देख रहा था,
उसकी बीबी, दो बोर्डिंग में पढ़ रहे बच्चों की मां। काॅरपोरेट वर्ड में अच्छी नौकरी करती आज की आजाद ख्याल समझदार नारी कह रही थी,
अपनी नष्तर सी तीखी आवाज में
‘‘तुम आना मेरे आॅफिस, मैं कहूंगी मेरा पति पागल है,
षक करता है,
यह मेरे बाॅस बहुत भले और नेक इंसान हैं।
‘‘वह कलप कर बोला,
अरे उसके तुमसे पहले चार अफेयर रहे है,
षीला, मालविका, तृप्ति के साथ,
मैनें सब पता किया पर तुम ही नहीं जानती। ‘‘नहीं वह षरीफ,
दुखी इंसान है और हम केवल फोन पर ही बात करते है। कभी रूबरू नहीं मिले‘‘। मैनें पहलू बदला और सोचा इसे लुढ़काकर इस बार किसी धार्मिक स्थान पर नहीं जाउंगा। साल भर का काॅल रिकार्ड, जिसमें लगातार चालीस-पचास काॅल रोज की दर्ज एक ही नंबर पर। फिर पिछले तीन माह से काॅल कम हो रहे है। एक ही जगह काम करते हो और कहती हो कभी मिले नही
? वह चीख रहा था,
बिलख रहा था। अपने परिवार को बचाने की पूरी कोषिष कर रहा था।
‘‘छोड़ूगां नहीं दैट बास्टर्ड को
‘‘। चुटकी बजाती वह खूबसूरत षै बोली,
‘‘आना, तुम आना‘‘
फिर वह दांत पीसकर जहरीले अंदाज से बोली,
‘‘मैं गवाही दूंगी कि यह मारता-पीटता है मुझे। इस षरीफ आदमी पर इल्जाम लगाता है। हम दोनों तुम्हारे खिलाफ बयान देगें और तुम सीधे जेल में।
‘‘
यह नया एंगल था। मेरा वास्ता कभी इतनी षातिर औरत से नहीं पड़ा था,
क्या दुनिया वाकई बदल गई थी
? पोट्रेट बनाता-बनाता मै,
जमाने की तेज रफ्तार से नावाकिफ रहा
? देखने का फिर मन किया पुरूष का चेहरा। थोड़ा उठकर सावधानी से झांका। अब वह बिल्कुल टूट गया था।
‘‘सिर झुकाएं, चुपचाप पत्थर पर गमगीन मुद्रा में बैठा था। खामोषी मेे,
चारों तरफ फेली नीरवता में उसके आसूं उसकी आत्मा का दर्द,
एक तीक्ष्ण बैचेनी पैदा कर रहा था। सन्नाटा था,
दोनों के बीच और था दर्द का नामालूम अहसास। मैनें अपने को संभाला, मेरा काम भावनाओं में बहना नहीं था। अपना काम ऐसे करके कि वह एक्सीडेंट लगे,
चुपचाप आना था। अच्छा हुआ मैनें षादी नहीं की। मुझे मेरे विष्वविद्यालय याद आए। जिन्होनें मुझे कभी भी जिंदगी की तालीम से महरूम नहीं रखा। याद आई बरसों पूर्व की चैथी या पांचवा विष्वविद्यालय जिसका नाम था अर्पिता, बला की हसीन तो नहीं थी पर बुरी भी नहीं थी। सबसे बढ़कर नाचीज पर मेहरबान थी। मैक्सिम गोर्की (डल न्दपअमतेपजपमे) के विष्वविद्यालय कुम्हार, मोची, कारपेन्टर हो सकते है तो मेरे विष्वविद्यालय जिंदगी के सबक सिखाती यह हसीनाएं क्यों नहीं हो सकती
? याद है ना दिल्ली विष्वविद्यालय से एम0
फिल हिन्दी प्रथम श्रेणी में किया है। नामवर प्रोफेसरों से पढ़ा हूं। स्वैच्छा से अपना कैरियर पोट्रेट बनाने का,
गीता में श्रीकृष्ण की वाणी पढ़कर
‘‘नैंन छिन्दति नैंन दैह पावकम् ‘‘ चुना है। कोई षिकायत नहीं है। कभी पकड़ा नहीं गया दस बरसों में,
हां षुरू में कुछ रातों तक नींद नहीं आती थी । जिन्हें मोक्ष दिलाता था,
(मारना षब्द बड़ा चीप है)
उनकी सूरतें, आंखों में तैरता मौत का खौफ मरने से एक पल पहले का क्षण जब बस गोली जिंदगी को खत्म कर रही है.एक पल
....केवल एक पल
...और यह जीवन से मृत्यु की ओट,
यह लम्हें कई दिनांे तक मेरा पीछा करते थे। सो नहीं पाता था,
मेरे हाथों मरे लोग हर जगह दिखाई देते थे । फिर गीता ने,
भगवान कृष्ण ने बड़ी मदद की थी। जय श्री कृष्ण। न कोई मरता है ना कोई मारता है। सिर्फ षरीर रूपी चोला आत्मा बदलती है। मैं बस यह चोला बदलते में ऊपर वाले की मदद करता हूं ।
बहरहाल बात हो रही थी मेरे विष्वविद्यालय की, और उसमें भी अर्पिता की। मेहरबान अर्पिता, युवा पत्रकार एक वर्ष तक हमने खूब जिंदगी जी, हर लम्हा, हर पल प्यार ही प्यार। डिमाडिंग नहीं थी ज्यादा कुछ ड्रेसेस, किताबे, (कवयित्री थी) अच्छा फूड और घूमना। बस चल रहा था मजे से। महिनें में चार-पांच बार मैं ‘‘बिजनेस टूर‘‘ पर रहता। जब काफी दिनों बाद आया तो आते ही वह नहीं मिली। दो दिन बाद मिली। मैं सोचकर आया था कि इससे आज षादी की बात कर लूगां। आखिर मुझे भी घर गृहस्थी बसानी अच्छी लगती है । ‘‘कैसी हो ‘‘यार तुम्हें बहुत मिस किया। ‘‘पर तुम बाहर थे। ‘‘हूं, काम-काम यू नो‘‘ लंच के बाद चलते -चलते जब मैने षाम का प्रोग्राम तय करना, चाहा तो वह बोली ‘‘नहीं बिजी हूं। ‘‘कल‘‘ मैनें आषा से पूछा ‘‘तुम्हें सरप्राईज देना है। ‘‘अभी नहीं, पूरा हफ्ता असाईनमेंट है।‘‘ ओ.के. यार कोई नहीं। फिर कुछ दिन बाद इत्तफाक से एक अधेड़ उम्र के बिजनेस मैन टाईप के आदमी के साथ उसे ताज में मैने देखा। मैं वहां अपने क्लाइंट के काम से गया था। घुट घुट कर बाते करती, खिलखिलाती अर्पिता। मेरा दिल होता तो वह जरूर टूट जाता। पर यह सबक याद था कि खूबसूरती किसी एक के साथ बंधकर कभी नहीं रहती, इस बार न्यूटेस्टामेंट (ईसा मसीह) ने संभाला, ऐसा संभाला फिर मैनें सपने देखना बंद कर दिया।
मैनें तुम्हें प्यार किया है,
तुम मेरी पत्नी हो,
मैं तुम्हें अब कभी नहीं टोकूंगां, तुम कभी भी आना-जाना। मैनें सावधानी से नीचे देखा पति आखिरी कोषिष कर रहा था। चलने की तैयारी करती स्त्री, बर्फ सी सर्द आवाज में बोली
‘‘मुझे तुमसे, तुम्हारें परिवार से नफरत है,
नफरत। ‘‘तुम्हारे साथ मैं अब बिल्कुल नहीं रहना चाहती। ‘‘आर्टिस्ट पहली बार अपने दिमाग में हलचल पा रहा था। मुझे इनमें से ही एक को लुढ़काने का एक्सीडेंटल मौत का काॅन्ट्रेक्ट मिला था। जो षब्द सामने थे,
उसके पीछे की कहानी मेेरे पास थी। स्थिति बेहद षडयंत्रकारी और डरावनी थी। यह दुनिया है,
मैने अपनी हलचल को दबाने की नाकाम कोषिष की। यूं भावनाएं में बहने से क्या काम कर पाओगें ? तुम साले बूढ़े होते जा रहे हो। बूढ़े
-मैं मन ही मन हंसा। मुझे मेरा नवीनतम विष्वविद्यालय की याद आ गई। ‘‘आई लव यू जाने मन
‘‘कितनी बार उसने मुझे कहा था,
इतनी हसीन, इतनी हसीन की बांहो में लेकर दुनिया से गायब हो जाउं। हर अंग सांचे में ढला,
कहीं पर भी अतिरिक्त वजन नहीं। कैसे मिले
? यह मत पूछो बस वह ऊपर वाला इस गरीब की सुनता है और मेरी जोड़ीदार भेज देता है,
और प्यार .....वाह,
वाह-वाह लाजवाब। ‘‘ तुम साले पुरूष नारी को भोगते हो,
वस्तु समझते हो
‘‘ वह अक्सर कहती,
बीयर से उसकी भावनायें खुलकर प्रकट होती। अक्सर मेरे गुप्त स्टूडियो अपार्टमेंट में बीयर,
सिगरेट लेने की अपनी तमन्ना पूरी करती। होती है हर लड़की में यह हसरत की लड़कों के षौक कम से कम एक बार तो वह पूरे करे। फिर बीयर पीती,
सिगरेट के कष लगाती अपनी बोल्ड और मीठी आवाज में वह सरगोषियां करती मेरे पहलू मे
‘‘आज यह नारी तुम्हें भोगेगी मैन। जैसा चाहंू तुम्हारा इस्तेमाल करूंगी।‘‘ आपके खादिम को क्या एतराज होता
! धुआंधार प्यार का दौर चलता जब पूरी रात वह खूबसूरत, प्यारी सैक्सी नारी आप सब नारियों की तरफ से पुरूष को भोगती, इस्तेमाल करती और अपनी आजादी का जष्न मनाती। फिर भोर होने से पहले मेरी बांहो में लिपट कर सो जाती। इस विष्वविद्यालय से सम्पर्क काफी रहा,
आगे भी चलता पर तभी उसके अफसर पति का ट्रांसफर दूसरे राज्य में हो गया।
‘‘ऐसा है तुम अपनी औकात में रहो।‘‘
वह पत्नी पुरूष से कह रही थी ।
‘‘क्या तो तुम ! दो कौड़ी के यू.डी.सी.। मेरी सेलरी तुमसेे तीन गुना ज्यादा है।
‘‘पति खामोष खड़ा जलील होता,
अपनी आत्मा को लहुलुहान होता देख रहा था ।
‘‘वह मेरा बाॅस तुमसे सात गुना ज्यादा कमाता है। दो बंगले, गाड़ियां है। ‘‘उसकी मोटी बीबी,
बच्चा भी है‘‘-
पति ने यथार्थ कहा।
‘‘वह बीबी ही उसे तंग करती है। मारती पीटती, धमकाती है, जिससे दुखी होकर वह कुछ समय मेरे से बात करके राहत पाता है।‘‘
‘‘वह समय,
दो घंटे रोज तुम्हें याद होगा,
मैनें ही दिया था। आज के समय में कामकाजी महिलाओं के पुरूष मित्र होते है। तुमने भी वादा किया था कि यह दोस्त बाहर का है,
दूसरे षहर का है।‘‘
पति ने खुद पुरूष मित्र से औरत को मिलने दिया,
बात करने दी
? ऐसा सुनकर मैनें दो चट्टानों के बीच की झिरी से औरत को देखा। वह क्षितिज में देखती चुप थी,
‘‘मुझे क्या पता था,
वह तुम्हारे दफ्तर का बाॅस है। रोज तुम दोनों आमने-सामने होते हो,
मिलते हो। ‘‘हम कभी बाहर नहीं मिले। ‘‘औरत झूठ बोलती आंखे चुऱाती बोली।‘‘ कितनी बार पिछले काफी समय से तुम अक्सर देर से आई। बाहर टूर पर गई,
मैनें कभी षक नहीं किया। पति की रूंधी आजवाज में सच्चाई की झलक थी ।
और मैं, मैं सोच रहा था इसी को मारने का कांन्ट्रेक्ट मै लेकर आया हूं। इसे ही एक्सीडेंटली मारना है। अब यह मत पूछना कांट्रेक्ट पत्नी ने दिया या उसके प्रेमी बाॅस ने। ‘‘अरे साले,
जब ऐसी नागिन के पल्ले बंधा है तो मौत तो लाजमी है।‘‘
सूरज अब लगभग डूबने को था,
बड़ा ही मनमोहक सनसैट का दृष्य था। यूं लगता था दूर क्षितिज में सूरज अपनी सी आब के साथ अपने घर,
घर नहीं,ं बल्कि अपनी प्रेयसी के साथ
‘‘क्वालिटी टाईम स्पेन्ड‘‘ करने जाने की बेताबी में है। मैनें स्ट्रेटजी बना ली थी। आज ही मौका और समय था काम खत्म करने का। कल वापसी की फ्लाईट थी। तो बस थोड़ा सा अंधेरा होते ही मुझे अचानक पीछे से या सामने से एक धक्का ही मारना था। फिर नीचे फिसलते हुए हसीन वादियों में,
हजारो फीट नीचे अल्लाह मियां उसे संभाकर अपने हजूर में बुला ही लेते। दो पल दो पल मैने आकाष की ओर देखा,
षिकार को पता भी नहीं और मौत इससे चंद मिनट ही दूर है । ऐसा ही होता है मेरे षिकार के साथ,
उसे मालूम भी नहीं पड़ता और वह जिस्म की कैद से मुक्त हो जाता है। मैं सावधानी से उठा,
मेरा मन फैसला ले चुका था। द्वन्द भावनाएं सब काबू में थी। कल नई यूनिविर्सिटी चांदनी सबसे षानदार अद्भूत समर्पित होने को बेताब से मेरी पहली डेट थी। थोड़ा आगे चट्टान के बीच में से चढ़ाई नुमा रास्ता था। जहां से चढ़कर उन्हें लौटना था। मैं उसके ठीक पास की चट्टान फ्राग राॅक की ओट में था। सूरज प्रेयसी के पास पहुंच चुका होगा। मैं बे-आवाज हंसा,
अंधेरा होना षुरू हो गया था,
वक्त आ गया था,
षरीर की कैद से आत्मा की मुक्ति का। औरत बोली,
‘‘ यहां से पहुंचते ही तलाक के कागजात मिलेगें उन पर चुपचाप साईन कर देना। फिर वह आगे बढ़ी और उपर जाने के लिए चढ़ी। पीछे टूटा,
बेबस मेरा षिकार, धीरे-धीरे उठा और ऊपर बढ़ा। उसके ठीक पीछे मुष्किल से आधी फुट के अंतर पर हजारों फीट गहरी खाई थी। पांव फिसला या हल्का सा भी धक्का दिया और बस
! मै थोड़ा चलकर ऐसी पोजीषन में आ गया था कि वह मेरी निगाह मे थे। मैं धैर्य से लगभग दस
-पन्द्रह फीट की चढ़ाई के आधे रास्ते में प्रतीक्षा कर रहा था। दिल की धड़कने पता नहीं क्यो आज बहुत तेज आवाज कर रही थी । पता नही अनगिनत पोट्रेट बनाने के बाद भी जब भी नई पाट्रेट बनाता हूं धड़कने बढ़ जाती है।‘‘
बस दो कदम और चंद लम्हें, चंद सांसंे और लिखी थी,
इस फानी दुनिया में उसके लिए। यही यही पल और मैनें सामने आकर एक हाथ से उसे धक्का दे दिया। वह लड़खड़ाई, संभालने के लिए उसने मेरी तरफ ही हाथ बढ़ाया पर हाथ हवा में रहा,
वह पलट कर गिरी,
चीखने की आवाज और बस हजारों फीट गहरी खाई में वह उड़ी चली जा रही थी। मुझे फीस वापस करनी होगी।
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